छोड़ के जग मोह की माया
छोड़ के जग मोह की माया
दयाल तेरे ही शरण में आया
अब कोई हमें भटकाए ना ||
काली घटा नभ पे छाए
तमस का ही गीत गाये
ढूंढ़ती किरणों की ये माला ||
बीते समय पंख लगाकर
सोया तन मन को जगा कर
मिल गई है दिल की ये आशा ||
किया किसने ऐसा जादू
कण कण जिसके सब है काबू
जोगी भोगी सबने या माना ||
सत्य नूतन शिव भी नूतन
लेकर जीवनवाद नरातन
पुरुषोत्तम ज्योति की धारा ||
No comments:
Post a Comment